सचित्र, मानचित्र सहित
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Binding | Hardcover |
Size | 9" x 6" |
श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी श्रीगौड़ीय
मठोंक प्रतिष्ठाता, श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर
श्रीगौड़ीयाचार्य केशरी नित्यलीलाप्रविष्ट
ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशतश्री
श्रीश्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामीचरणके
अनुगृहीत
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा सम्पादित
ब्रजकी सीमा
ब्रजमण्डल चौरासी कोसमें विस्तृत है। गर्ग संहितामें कहा गया है-
प्रागुदीच्यां बहिर्षदो दक्षिणस्यां यदोः पुरात् ।
पश्चिमायां शोणितपुरान्माथुरं मण्डलं विदुः ।। (भ.सं.ख. २)
बर्हिषद् (बरहद) से पूर्वोत्तर, यदुपुर (शूरसेनके गाँव बटेश्वर) से दक्षिण और शोणितपुर (सोनहद) से पश्चिममें चौरासी कोस भूमिको विद्वज्जनोंने ‘माथुर मण्डल या ब्रज’ कहा है। श्रीग्राऊस महोदयने स्वलिखित ‘मथुरा मैमोअर’ में निम्नलिखित दोहेका उल्लेख किया है
”इत बरहद इत सोनहद, उत सूरसेनको गाँव ।
ब्रज चौरासी कोसमें, मथुरा मण्डल माँह ।।“
उक्त दोहेसे स्पष्ट है कि ब्रजकी सीमा एक ओर ‘बर’ दूसरी ओर ‘सोनहद’ तथा तीसरी ओर सूरसेनका गाँव ‘बटेश्वर’ मानी गयी है। ‘बर, नामक स्थान वर्तमान अलीगढ़ जिलेमें है, जो ब्रजमण्डलके पूर्वोत्तरमें स्थित है। सोनहद वर्तमान हरियाणा प्रदेशके गुड़गांव जिलेमें स्थित है, जो ब्रजमण्डलके उत्तर पश्चिम कोनेमें स्थित है। इसीका प्राचीन नाम शोणितपुर था। सूरसेनका ग्राम ‘बाह’ तहसीलका बटेश्वर नामक गाँव है। इन्हीं स्थलियोंके मध्यस्थ
स्थलीको ब्रजमण्डल कहा गया है।
ब्रह्माण्ड पुराणमें भी ब्रजमण्डलकी सीमाका उल्लेख देखा जाता है। उसके अनुसार ब्रजमण्डलके पूर्वमें हास्यवन, दक्षिणमें र्जीवन, पश्चिममें पर्वतवन तथा उत्तरमें सूर्यपत्तन वन स्थित है।
इसके अनुसार पूर्वमें आगरा जिलेका हसनगढ़ हास्यवनके नामसे, पश्चिममें राजस्थानका काम्यवनके पासका ‘बहाड़ी ग्राम’ पर्वतवनके नामसे, दक्षिणमें धौलपुर तहसीलका जाजऊ ग्राम ‘जह्नु’ के नामसे प्रसिद्ध है, उत्तर भागमें अलीगढ़ जिलेके जेवर ग्रामके निकट सूर्यपत्तन वनकी स्थिति मानी गई है।
चौरासी कोस ब्रजमण्डलमें वन, उपवन, प्रतिवन और अधिवन कुल मिलाकर ४८ वन हैं। पद्म पुराणके अनुसार यमुनाजीके पूर्व और पश्चिममें महावन, काम्यवन, मधुवन, तालवन, कुमुदवन, भाण्डीरवन, वृन्दावन, खदीरवन,
लोहवन, भद्रवन, बहुलावन और बेलवन-ये बारह मुख्य वन स्थित हैं। इनमेंसे मधुवन, तालवन, कुमुदवन, बहुलावन, काम्यवन, खदीरवन और वृन्दावन-ये सात वन यमुनाके पश्चिम भागमें हैं। भद्रवन, भाण्डीरवन, बेलवन,
लोहवन तथा महावन ये पाँच वन यमुनाके पूर्वमें स्थित हैं।
वराह पुराणमें बारह उपवनोंका उल्लेख है-ब्रह्मवन, अप्सरावन, विह्व्लवन, कदम्बवन, स्वर्णवन, सुरभिवन, प्रेमवन, मयूरवन, मानेङ्गितवन, शेषशायीवन, नारदवन और परमानन्दवन।
भविष्य पुराणमें बारह प्रतिवनोंका उल्लेख इस प्रकार है-रङ्कवन, वार्त्तावन, करहावन, कामवन, अञ्जनवन, कर्णवन, कृष्णाक्षिपनवन, नन्दप्रेक्षण कृष्णवन, इन्द्रवन, शिक्षावन, चन्द्रावलीवन, लोहवन।
विष्णु पुराणमें बारह अधिवनोंका वर्णन मिलता है-मथुरा, राधाकुण्ड, नन्दगांव, गढ़, ललिता ग्राम, वृषभानुपुर, गोकुल, बलभद्रवन, गोवर्द्धन, जावट, वृन्दावन और संकेत वन। ये कुल ४८ वन हैं।
ब्रजमण्डल-परिक्रमाके नियम
मथुराके विश्रामघाटपर ब्रजमण्डल परिक्रमाके लिए संकल्प ग्रहण करें। इसके लिए किसी सरल, शास्त्रज्ञ, सदाचारी, दयालु, निर्मत्सर, तत्त्वज्ञ, निर्लोभी एवं भजन परायण वैष्णव, भक्त, तीर्थगुरु या ब्रजवासी पुरोहितके द्वारा संकल्प
ग्रहण कर परिक्रमा आरम्भ करें। परिक्रमाके समय निम्नलिखित विधि एवं निषेधोंका यथासाध्य पालन करना चाहिए-
विधि-सत्य बोलना, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना, पृथ्वीपर शयन करना, दूसरोंके अपराधोंको क्षमा करना, तीर्थोंमें स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसादका ही सेवन करना, तुलसीमालापर हरिनाम कीर्त्तन या वैष्णवोंके साथ
हरिनाम सङ्कीर्त्तन करना चाहिए। परिक्रमाके समय मार्गमें स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियोंका विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें।
निषेध- क्रोध नहीं करना, परिक्रमा पथमें वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदिको नहीं छेड़ना; ब्राह्मण, वैष्णवादि तथा श्रीमूर्तियोंका अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्यका वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसासे बचना,
परनिन्दा, परचर्चा और कलहसे सदा बचना-ये सब निषेध हैं।
परिक्रमाका समय
गौड़ीय वैष्णव, श्रीचैतन्य महाप्रभुके ब्रजभ्रमणका अनुसरण करते हैं। इसके अनुसार कुछ लोग आश्विन माहमें विजया दशमीके पश्चात् शरद् कालमें परिक्रमा आरम्भ करते हैं क्योंकि श्रीचैतन्य-चरितामृतके अनुसार
श्रीमन्महाप्रभु श्रीनीलाचल धामसे ब्रजमण्डलका दर्शन करनेके लिए इसी समय पधारे थे। कुछ गौड़ीय वैष्णवगण आश्विन शुक्ल एकादशीसे कार्तिक व्रत, नियम सेवाके दिनसे ब्रजमण्डल परिक्रमा आरम्भ करते हैं, तथा कार्तिक
शुक्ल देवोत्थान एकादशीको व्रतका समापन करते हैं। अधिकांश गौड़ीय वैष्णव शारदीया पूर्णिमाके दिन क्षौर आदि कार्य सम्पन्न कर उसी दिनसे कार्तिक व्रत नियम सेवा या ऊर्जाव्रतका पालन एवं ब्रजमण्डल परिक्रमाका
संकल्प ग्रहण करते हैं तथा देवोत्थान एकादशीके पश्चात् कार्तिक पूर्णिमाके दिन कार्तिक-व्रत एवं ब्रजमण्डल परिक्रमाका भी समापन करते हैं।
श्रीनिम्बार्क सम्प्रदायके वैष्णवगण श्रीकृष्ण-जन्माष्टमीके पश्चात् आनेवाली दशमीसे ब्रजमण्डल परिक्रमाका शुभारम्भ करते हैं। इनकी परिक्रमामें डेढ़ माहका समय लगता है। पुष्टीमार्गीय वैष्णवगण श्रीराधाष्टमीके पश्चात् दशमी या एकादशीसे ब्रजमण्डलकी परिक्रमा लगभग दो माहके समयमें समाप्त करते हैं।
ब्रजमण्डल परिक्रमामें निम्नलिखित स्थानोंका पर्यायके अनुसार दर्शन होता है-
श्रीमथुरा, मधुवन, तालवन, शान्तनुकुण्ड, गंधेश्वर, बहुलावन, राल, मघेरा, जैत, शकटीकरा (छट्टीकरा) गरुड़गोविन्द, बहुलावन, मरो, दतिहा, अडिग, माधुरीकुण्ड, जखीनगांव, तोष, जनती, वसति, मुखराई, श्रीराधाकुण्ड, श्रीश्यामकुण्ड, कुसुम सरोवर, नारद कुण्ड, ग्वाला पुष्करिणि, युगल कुण्ड, किल्लोलकुण्ड, मानसी गंगा, गोवर्धन, इन्द्रध्वजवेदी, जमुनावति, परासौली, पैंठागांव, बछगांव (वत्स वन), आन्यौर गांव, गौरीकुण्ड, सङ्कर्षणकुण्ड, गोविन्दकुण्ड, नवलकुण्ड, अप्सराकुण्ड, शक्रकुण्ड, पूछरी, श्यामढाक, राघव पण्डितकी गुफा, सुरभिकुण्ड, ऐरावतकुण्ड, हरजीकुण्ड, यतीपुरा, बिलछुकुण्ड, चकलेश्वर महादेव, सखी स्थली, नीमगांव, पाडर, कुञ्जेरा, पालि, डेरावलि, मान, साहार, सूर्यकुण्ड, पेरकु, भादार, कोनाई, वसति, श्रीराधाकुण्ड, गोवर्धन, जावककुण्ड, गुलालकुण्ड, गांठोली, वेहेज, देवशीर्ष, मुनिशीर्ष, परमादना, बद्रीनारायण, गोहाना, खों, आलीपुर, आदिबद्री, पशोपा, केदारनाथ, बिलंद, चरणपहाड़ी, भोजनथाली, काम्यवन, वजेरा, सुनहरा कदम्ब-खण्डी, ऊँचा गाँव, सखीगिरी पर्वत, बरसाना गाँव, गहवर वन, डभोरा, रासौली, प्रेमसरोवर, संकेत, रिठोरा, मेहरान, सत्वास, नन्देरा, भोजनथाली, नुनेरा, शृंगारवट, बिछोर वन, वनचरी, होड़ल, दहीगांव, लालपुर, कामेर, हरावली गांव, सांचुली, गैंड़ो, नन्दगांव, कदम्ब टेर, जावट, धनसिंगा, कोसी, पयगाँव, छत्रवन, सामरी, नरी, साँखी, आरबाड़ी, रणवाड़ी, भादावली, खाँपुर, ऊमराव, रहेया, कामाई, करेला, पेसाई, लुधौली, आंजनक, खदीरवन, बिजुआरी, श्रीनन्दगांव, कोकिलावन, छोटी बैठन, बड़ी बैठन, चरण पहाड़ी, रसौली, कोटवन, खामी, शेषशायी, रूपनगर, मझई, रामपुर, उजानी, खेलनवन, ओबे, श्रीरामघाट, काश्रट, अक्षय वट, गोपीघाट (तपोवन), चीरघाट, नन्दघाट, भयगांव, जैतपुर, हाजरा, बलीहारा, बाजना, जेओलाई, सकरोया, आटास, श्रीवृन्दावन, देवीआटास, परखम, चौमा, अजई, सिंहाना, रेहाना, पसौली, वरली, तरौली, एई, सेई, माई, वसाई, श्रीनन्दघाट, भद्रवन, भाण्डीरवन, माट, बेलवन, मानसरोवर, आरा, पानीगांव, लौहवन, राबेल, गढ़ुई, आयरो, कृष्णपुर, बाँदी, दाऊजी, हातौरा, ब्रह्माण्ड घाट, चिन्ताहरण घाट, महावन, गोकुल, कैलो, बादाई ग्राम, नौरंगाबाद, श्रीमथुरा, अक्रूर घाट, भातरौल, (अटल वन) क्यारीवन, बिहारवन, गोचारण वन, कालीय दमनवन, गोपालवन, निकुञ्जवन, (सेवाकुञ्ज) निधुवन, झूलनवन, गहवरवन, पपड़वन। इन बारह वनोंसे युक्त श्रीवृन्दावन।
Sri Vraja-mandala parikrama, originally inaugurated by Sriman Mahaprabhu Himself, has been conducted for over fifty years under the supervision and guidance of Srimad Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja. This book is a beautiful exposition of the confidential places of Sri Krsna's sweet pastimes in Vraja. The sincere devotee who has a deep thirst to enter into the sweetness of the land of Vraja will find ambrosial nectar flowing through these pages.
"Blessed is the land of Vraja, where the creator of the universe, Lord Brahma, dwells in the form of a mountain range in Varsana, to have the dust of the Divine Couple Sri Sri Radha-Krsna's lotus feet on the head; where the maintainer, Lord Visnu, has assumed the forms of Govardhana and Visnu-parvata; where the moon-crested Lord Siva has taken up residence as Nandisvara Hill in Nandagrama; and where Sri Uddhava, the best of Hari's servants, lives as a blade of grass, a small shrub or a creeper on the bank of Kusuma-sarovara."
TITLE: Shri Braja Mandal Parikrama - Hindi
AUTHOR: Srimad Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Prakashan
EDITION: Fourth, 2017
ISBNs: 978-81-942673-1-7 9788194267317
BINDING: HardBound
PAGES: 320, Premium Paper, with color Illustrations and Inset Map
SHIPPING WEIGHT: 750 grams
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