(श्रीमद्भागवत् द्वितीयस्कन्ध नवम अध्यायके
२९वें श्लोकसे ३८वें श्लोक तक)
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
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Binding | Paperback |
Size | 9" x 6" |
अन्वय, अनुवाद, तथ्य, श्रीमध्वाचार्यपाद, श्रीविजयध्वज तीर्थपाद, श्रील जीव
गोस्वामीपाद, श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामीपाद, श्रील श्रीनिवासाचार्यपाद,
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर, श्रीश्रीधरस्वामीपाद, श्रीवल्लभाचार्यपाद,
श्रीवीरराघवाचार्यपाद, श्रीशुकदेवपाद, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, श्रील
भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ‘प्रभुपाद’ आदिकी
टीकाओं और विवृतियों
तथा
उनके भावानुवाद सहित
यह चतुःश्लोकी ही श्रीमद्भागवतकी मूल सूत्रावलि है। इस सूत्रावलिके आधारपर ही अट्ठारह हजार श्लोकोंसे समन्वित श्रीमद्भागवतकी रचना हुई है। जिस प्रकार श्रीमद्भागवतमें सर्ग, विसर्ग, स्थान, ऊति, पोषण, मन्वन्तरकथा, ईशकथा, निरोध, मुक्ति और आश्रय - यह दस विषय द्वादश स्कन्धोंमें विस्तृत रूपसे विवृत हुए हैं, उसी प्रकार इस चतुःश्लोकीमें भी सूत्र रूपसे यह दस विषय वर्णित हुए हैं तथा इस चतुःश्लोकीमें सम्बन्ध, अभिधेय एवं प्रयोजन नामक तीन तत्त्वोंका भी निरूपण हुआ है - पहले दो श्लोकों द्वारा सम्बन्धतत्त्व, तीसरे श्लोक द्वारा प्रयोजनतत्त्व तथा चतुर्थ श्लोक द्वारा अभिधेयतत्त्वका निरूपण हुआ है।
इसके अतिरिक्त यह ‘चतुःश्लोकी-भागवत’ वेदोंका भी सार-स्वरूप है। समग्र ऋग्वेदका संक्षेप-स्वरूप उसका जो प्रथम मन्त्र है, उसका अर्थ चतुःश्लोकी-भागवतके प्रथम श्लोकमें व्यक्त है। समग्र यजुर्वेदका संक्षेप-स्वरूप उसका जो प्रथम मन्त्र है, उसका अर्थ चतुःश्लोकी-भागवतके द्वितीय श्लोकमें कहा गया है। समग्र अथर्ववेदका संक्षेप-स्वरूप उसका जो प्रथम मन्त्र है, उसका अर्थ चतुःश्लोकी-भागवतके तृतीय श्लोकमें संगृहीत हुआ है। समग्र सामवेदका संक्षेप-स्वरूप उसका जो प्रथम मन्त्र है, उसका अर्थ चतुःश्लोकी-भागवतका चतुर्थ श्लोक है।
भगवान् श्रीनारायणसे चतुःश्लोकी-भागवत प्राप्त होनेपर श्रीब्रह्माने इसका उपदेश श्रीनारदको दिया तथा उन्हें इसका विस्तार करनेके लिए भी आदेश दिया। श्रीनारदने कृपापूर्वक श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासको इसका उपदेश देकर उन्हें समाधियोगसे श्रीकृष्णकी समस्त लीलाओंका दर्शनकर विस्तारपूर्वक उनका वर्णन करनेके लिए कहा। श्रीवेदव्यासने समाधियोगमें श्रीकृष्णकी समस्त लीलाओंका दर्शनकर सम्पूर्ण श्रीमद्भागवतकी रचना की तथा उसे श्रीशुकदेव गोस्वामीको अध्ययन कराया। वे श्रीशुकदेव गोस्वामी ही श्रीमद्भागवतके प्रथम वक्ता हैं।
Sri Narayana, pleased by Lord Brahma's penance, tells him in four verses (found in the ninth chapter of the Second Canto of Srimad-Bhagavatam) the entire essence of Srimad-Bhagavatam, profound with deep meaning subject to different interpretation by different sampradayas.
This edition is unique in that it has commentaries and their translations done by prominent acaryas of four different Vaisnava sampradayas. It is especially filled with a rasamayi interpretation of these four verses as done by acaryas of the Gaudiya Vaishnava sampradaya.
TITLE: Catuh Sloki Bhagavatam (Srimad Bhagavatiya CatuhSloki)
AUTHOR: Shrimat Krishna Dvaipayana-VedaVyasa
EDITED by Srimad Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Publications
EDITION: 2008, First Edition
PAGES: 202, Illustrated with 8 Color Plates
SHIPPING WEIGHT: 400 grams
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