श्रीचैतन्यचरितामृतान्तर्गत
श्रील कृष्णदास कविराजकृत
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Binding | Paperback |
Size | 8.5" x 5.5" |
श्रीश्रीगुरु-गौराङ्गो जयतः
श्रीचैतन्यचरितामृतान्तर्गत
श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी
श्रीगौड़ीय मठोंके प्रतिष्ठाता, श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर
श्रीगौड़ीयाचार्यकेशरी
ॐ विष्णुपाद श्रीश्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामीचरणके
अनुगृहीत
त्रिदण्डिस्वामी
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा
सम्पादित और तद्रचित विवृत्ति सहित
श्रीचैतन्य-चरितामृत शुद्धभक्ति-सिद्धान्तरूप अनुपम ग्रन्थ-रत्न है। श्रीरायरामानन्द-संवाद श्रील कृष्णदास कविराजकृत श्रीचैतन्य-चरितामृत ग्रन्थका उज्ज्वल रत्न ‘कौस्तुभमणिस्वरूप’ है।
श्रीचैतन्यचरितामृत शुद्धभक्ति-सिद्धान्तरूप अनुपम ग्रन्थ-रत्न है। श्रीरायरामानन्द उड़ीसाके प्रतापी सम्राट महाराज प्रतापरुद्रके दक्षिण-भारतीय क्षेत्रके राज्यपाल थे। वे भगवती गोदावरीके तटपर स्थित विद्यानगरमें (वर्तमान कोबूर, राजमुन्दरी) रहकर राज्य-कार्य सम्भालते थे। श्रीचैतन्य महाप्रभु जियड़ नृसिंहका दर्शनकर उसीके सन्निकट गोदावरीके तटपर प्रातःकाल स्नान करनेके लिए पधारे। श्रीरायरामानन्द भी राजकीय ठाट-बाटसे ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मन्त्रोंके उच्चारणके मध्य स्नान कर रहे थे। वहीं दोनोंमें भेंट हुई। दोनों एक-दूसरेसे बड़े प्रभावित हुए। श्रीरायरामानन्दने श्रीचैतन्य महाप्रभुको उसी नगरमें कुछ दिन निवास करनेका आग्रह किया। उनके अनुरोधसे श्रीमन्महाप्रभुने किसी एक वैदिक वैष्णव ब्राह्मणके घरपर कुछ दिन निवास किया। संध्याके समय श्रीरायरामानन्द दीन-हीन वेशमें श्रीमन्महाप्रभुसे मिले। महाप्रभुजीने जीवोंके साध्य-साधनके सम्बन्धमें प्रामाणिक शास्त्रीय श्लोकोंको उद्धृत करते हुए उन्हें साध्य निर्णय करनेके लिए आदेश दिया।
श्रीरामानन्दरायके द्वारा सर्वप्रथम वर्णाश्रमधर्मरूप जनसाधारणके सामान्य धर्मका उल्लेख किए जानेपर श्रीमन्महाप्रभुने अन्तिम ज्ञान-शून्य शुद्धभक्तिको साध्यवस्तुके रूपमें स्वीकार किया। पुनः भक्तिके सम्बन्धमें महाप्रभुजी द्वारा कुछ और वर्णन करनेके लिए कहे जानेपर श्रीरामानन्दरायने पहले शुद्ध कृष्ण-रतिरूपा प्रेमभक्ति, तत्पश्चात् दास्यप्रेम तत्पश्चात् सख्यप्रेम तत्पश्चात् वात्सल्यप्रेम और अन्तमें कान्ता-भावगत प्रेमको ही साध्यसार बतलाया। कान्ताप्रेम किस प्रकारसे साध्यसार है, उसे भी श्रीरायरामानन्दजीने विविध प्रकारके शास्त्रीय प्रमाणोंके आधारपर बतलाया। श्रीमन्महाप्रभु द्वारा उसे चरमसाध्य स्वीकार किए जानेपर श्रीरामानन्दरायने श्रीमती राधिकाके प्रेमको सर्वोच्च बतलाया। उसे सुनकर श्रीमन्महाप्रभुजी बड़े प्रसन्न हुए और उनसे कृष्णस्वरूप, राधास्वरूप, रसतत्त्वका स्वरूप तथा प्रेमतत्त्वका वर्णन करनेके लिए कहा। रायरामानन्दजीने शास्त्रीय प्रमाणोंके आधारपर क्रमशः इन तत्त्वोंका विशद रूपसे वर्णन किया। श्रीमन्महाप्रभुजीने इससे भी और आगे कुछ कहनेका आदेश दिया। तब रायरामानन्दजीने स्वरचित प्रेम-विलास-विवर्तरूप विप्रलम्भगत अधिरूढ़ भावमय एक गीत गाया। अन्तमें श्रीमन्महाप्रभुके कहनेपर श्रीरामानन्दरायने श्रीराधाकृष्णकी प्रेमसेवारूप परम-साध्य वस्तुको पानेके लिए उपायस्वरूप व्रजसखियोंके आनुगत्यमें भजनानुशीलनको विशेष रूपसे स्थिर किया। कुछ दिनों तक प्रतिरात्रि नाना प्रकारसे श्रीराधाकृष्णसम्बन्धी कथावार्ताओंके श्रवण-कीर्तन करनेके पश्चात् श्रीरामानन्दराय श्रीमन्महाप्रभुके मूल-तत्त्व और स्व-स्वरूपका दर्शनकर मूच्छित हो गए। महाप्रभुने अपने सुशीतल करकमलोंसे उन्हें उठाकर आलिङ्गनपाशमें आबद्ध कर लिया और अपने इस स्वरूपको अन्यत्र कहीं भी प्रकट करनेके लिए निषेध किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने रायरामानन्दजीको राज्य-कार्यको परित्यागकर जगन्नाथपुरी आनेका आदेश दिया और उन्हें बतलाया कि मैं भी दक्षिण भारतीय तीर्थोंका दर्शनकर जगन्नाथपुरी लौटूंगा, तब हम दोनों परस्पर श्रीराधाकृष्णकी लीलाकथाओंका वर्णन एवं श्रवणकर सुखपूर्वक जीवनका अवशेष काल व्यतीत करेंगे।
In the conversation between Sri Raya Ramananda and Sriman Mahaprabhu, the prema of Srimati Radhika is established as the crest jewel of all attainments. Later in the conversation, Sri Raya Ramananda describes the very elevated state of devotional love called prema-vilasavivarta. Prema-vilasa-vivarta is a high level of prema experienced by Srimati Radhika when, even at the time of separation from Sri Krsna, due the influence of adhirudha-mahabhava, Srimati Radhika feels that She is meeting with Him.
Upon hearing of this supremely exalted state, Sriman Mahaprabhu accepted it as the soul’s ultimate goal. Sriman Mahaprabhu also accepted that following in the footsteps of the sakhis of Vraja is the only method by which to attain this ultimate goal. By hearing with complete faith this conversation between Sri Ramananda Raya and Sri Caitanya Mahaprabhu, one will achieve prema-bhakti to the lotus feet of Sri Radha-Krsna, and automatically, as a secondary result, one will also achieve complete knowledge of Krsna tattva, Radha tattva, Prema tattva, and Rasa tattva - the fundamental truths regarding the Supreme Lord, Sri Krsna, His eternal consort Sri Radha, the love They share, and the varieties of exchanges between Sri Krsna and His intimate associates.
TITLE: Sri Chaitanya Charitamirta-antargata, Sri Raya Ramananda Samvad - Hindi
AUTHOR: Srila Krishna Dasa Kaviraja Goswami
EDITOR: Srimad Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Prakashan
EDITION: First, 2006
PAGES : 188, with Color Plates
SHIPPING WEIGHT: 380 grams
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