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श्रीशिक्षाष्टक (Sri Siksastaka - Hindi)

[ श्रीचैतन्य महाप्रभुके श्रीमुखनिःसृत ] 

Shri Shikshashtaka - Issuing from the divine mouth of Shri Chaitanya Mahaprabhu

  • Author: Srila Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja
  • Publisher: 2009, Gaudiya Vedanta Publications
  • Binding: Paperback
  • Pages: 92

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[ श्रीचैतन्य महाप्रभुके श्रीमुखनिःसृत ]

श्रीशिक्षाष्टक

मूल श्लोक, अन्वय, श्लोकानुवाद, श्रीसच्चिदानन्द
भक्तिविनोद ठाकुर कृत सन्मोदनभाष्य, सन्मोदन
भाष्यका अनुवाद, श्रीचैतन्यचरितामृतसे उद्धृत उद्धृत पद्यानुवाद
एवं श्रीलभक्तिविनोद ठाकुर कृत कीर्त्तन-पद

श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी श्रीगौड़ीय मठोंके प्रतिष्ठाता,
श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर श्रीगौड़ीयाचार्य केशरी
ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशतश्री श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराजके
अनुगृहीत
त्रिदण्डिस्वामी श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा अनूदित एवं सम्पादित


यह शिक्षाष्टक सम्पूर्ण वेदोंका सारस्वरूप है। इसकी संस्कृत भाषा अत्यन्त सहज-सरल होनेपर भी इसका आशय इतना गम्भीर है कि आजीवन अनुशीलन करनेपर भी इसका अन्त नहीं मिल सकता। पढ़ने और विचार करनेपर प्रत्येक बार नये-नये भावोंकी स्फूर्ति होती रहती है। इसलिए यह नित्य नवीन बना रहता है। अतः यह शिक्षाष्टक श्रीगौड़ीय वैष्णवोंके लिए कण्ठहारस्वरूप है।

श्रीचैतन्य महाप्रभुके परिकर, आधुनिक युगमें भक्तिभागीरथीको पुनः प्रवाहितकर विश्वको प्रेम-प्लावित करनेवाले, बहुत-से भक्तिग्रन्थोंके रचयिता श्रीभक्तिविनोद ठाकुरने इन श्लोकोंका एक सुसिद्धान्तपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी भाष्य लिखा है। यह भाष्य 'श्रीसन्मोदनभाष्य' के नामसे प्रसिद्ध है। इस भाष्यके अनुशीलनके बिना मूल श्लोकोंके निगूढ़ तत्त्वोंको समझना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव है। इस हदयग्राही भाष्यके सहारे इन श्लोकोंमें छिपे हुए प्रेमावतार श्रीशचीनन्दन गौरहरिके हृद्गत परमोन्नत उज्ज्वल प्रेमरसके सर्वोच्च भावोंका अवलोकन करनेपर पद-पदपर आश्चर्यचकित होना पड़ता है। हृदय अप्राकृत आनन्दसे विभोर हो उठता है और श्रीकृष्णनामके प्रति अभूतपूर्व श्रद्धा और भक्तिभावका सञ्चार हो पड़ता है। इसकी महिमा अनन्त है। यह स्वयं महामहिम है। इस विषयमें स्वयं भाष्यकारने संक्षेपमें, किन्तु महत्वपूर्ण रूपमें प्रकाश डाला है। अतः कुछ अधिक लिखना सूर्यको दीपक दिखानेके समान है।

श्रीशिक्षाष्टकमें सम्बन्ध, अभिधेय (साधन) और प्रयोजन (साध्य) तत्वोंका सुन्दर रूपमें समावेश है। यों तो आठ श्लोकोंमें अभिधेय-तत्त्वकी शिक्षा निहित है, फिर भी प्रथम पाँच श्लोकोंमें साधनभक्ति, छठे और सातवें श्लोकोंमें भावभक्ति और सातवें तथा आठवें श्लोकोंमें प्रेमभक्ति परिस्फुट है। विशेषतः सातवें और आठवें श्लोकोंमें श्रीमती राधिकाजीके निजस्व अधिरूढ़ महाभावान्तर्गत विप्रलम्भ भावात्मक प्रेम-वैचित्त्यका अत्युच्च निर्दशन पाया जाता है।

Issuing from the divine mouth of Sri Caitanya Mahaprabhu, the eight verses comprising this Sri Siksastaka shine as the supremely radiant jewel of transcendental literature. They are the very essence of all the Vedas and a necklace for all Gaudiya Vaisnavas. This definitive edition, with the translation and commentary of Srīla Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja, features the soul-stirring commentaries of Srila Bhaktivinoda Thakura and Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Thakura.

TITLE: Sri Sikshashtak - Hindi
COMPILER and EDITOR: Srimad Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Prakashan
EDITION: Fourth, 2009
PAGES: 92,  Illustrated
SHIPPING WEIGHT: 200 grams

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Shri Shikshashtaka - Issuing from the divine mouth of Shri Chaitanya Mahaprabhu

  • Author: Srila Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja
  • Publisher: 2009, Gaudiya Vedanta Publications
  • Binding: Paperback
  • Pages: 92

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