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Binding | Hardcover |
Size | 9" x 6" |
(प्रथम-खण्ड, स्कन्ध १-४)
श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी श्रीगौड़ीय मठोंके
प्रतिष्ठाता, श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर श्रीगौड़ीयाचार्य केशरी नित्यलीलाप्रविष्ट
ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशत श्री
श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराजके
अनुगृहीत
त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा सम्पादित
" मेरे द्वारा श्रीमद्भागवतका माहात्म्य वर्णन करना सूर्यको दीपक दिखलाना है। श्रीमद्भागवत साक्षात् भगवान्का स्वरूप है। इसीलिए महाभागवतजन भगवद्भावनासे श्रद्धापूर्वक इस ग्रन्थराज भागवत्की आराधना किया करते हैं। भगवान् श्रीवेदव्यास जैसे भगवत्-स्वरूप महापुरुषको भी वेदोंका विभाग करने, निखिल श्रुतियोंके सार ब्रह्मसूत्र, महाभारत और पुराणोंकी रचना करनेपर भी शान्ति नहीं मिली, अन्ततः श्रीमद्भागवतकी रचना करनेपर ही उन्हें शान्ति मिली। जिसमें सार्वकालिक, सार्वदेशिक और सार्वजनिक निखिल समस्याओंका समाधान है-उस श्रीमद्भागवतकी अपार महिमाको कौन वर्णन कर सकता है। यह परम मधुर भगवद्रसका छलकता हुआ अगाध-अनन्त महासागर है। इसीलिए भावुक भक्तजन इसमें अवगाहनकर परम मधुर भगवद्रसका पद-पदपर आस्वादन करते हैं।
श्रीमद्भागवतके इस हिन्दी संस्करणका एक वै्यिष्ट्य यह है कि इसमें प्रत्येक स्कन्धकी कथाका सार दिया गया है। जिससे पाठकों का उस स्कन्धकी विषय वस्तुसे अवगत होनेमें सुविधा है। इसके अतिरिक्त इस संस्करणमें श्लोकका अनुवाद अभिन्न व्रजेन्द्रनन्दन श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा स्थापित शक्ति-परिणामवाद समन्वित अचिन्त्यभेदाभेद सिद्धान्त पर आधारित है। "
श्रीहरि-गुरु-वैष्णवकृपालेश-प्रार्थी
त्रिदण्डिभिक्षु
श्रीभक्तिवेदान्त नारायण
विषय -सूची: प्रस्तावना, श्रीमद्भागवत् तात्पर्य, श्रीमद्भागवत-माहात्म्य, श्रीमद्भागवत-सप्ताहके श्रवणकी महिमा और पारायण-विधि
प्रथमः स्कन्धः
प्रथम स्कन्धकी कथाका सार
प्रथमोऽध्यायः-नैमिषारण्यमें शौनकादि ऋषियों द्वारा श्रीसूतगोस्वामीसे प्रश्न
द्वितीयोऽध्यायः-सम्बन्ध-श्रीभगवान्, अभिधेय-श्रीभक्ति, प्रयोजन-प्रेम
तृतीयोऽध्यायः-श्रीभगवान्के अवतारोंकी कथा
चतुर्थोऽध्यायः-वक्ता एवं श्रोताकी श्रेष्ठता, श्रीव्यासका असन्तोष
पञ्चमोऽध्यायः-भगवान्के यश-कीर्तनकी महिमा और देवर्षि नारदका पूर्वचरित
षष्ठोऽध्यायः-देवर्षि नारदका वनमें गमन, श्रीकृष्णका दर्शन तथा चिन्मय स्वरूपकी प्राप्ति
सप्तमोध्यायः-श्रीव्यासदेवके द्वारा भक्तियोग-समाधिमें लीला-परिकरोंके साथ पूर्णपुरुष श्रीकृष्णका दर्शन, अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाका मानमर्दन
अष्टमोऽध्यायः-गर्भस्थ परीक्षितकी रक्षा, कुन्तीके द्वारा भगवान्की स्तुति तथा महाराज युधिष्ठिरका शोक
नवमोऽध्यायः-युधिष्ठिर आदिका भीष्मदेवके पास जाना, भीष्मदेवके द्वारा उन्हें समझाना तथा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति करते हुए भीष्मदेवका महाप्रयाण
दशमोऽध्यायः-पाण्डवोंके निष्कण्टक राज्यकी स्थापना, श्रीकृष्णका द्वारका गमन एवं कुरु-रमणियों द्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति
एकादशोऽध्यायः-द्वारकापुरीमें श्रीकृष्णका राजोचित अभिनन्दन
द्वादशोऽध्यायः-परीक्षित्का जन्म-वृत्तान्त
त्रयोदशोऽध्यायः-श्रीविदुरके उपदेशसे धृतराष्ट्र और गान्धारीका वनमें गमन और युधिष्ठिर द्वारा देवर्षि नारदसे उनका वृत्तान्त श्रवण
चतुर्दशोऽध्यायः-अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिरका शङ्का करना और अर्जुनका द्वारकासे लौटना
पञ्चदशोऽध्यायः-श्रीकृष्णके विरहमें व्यथित पाण्डवोंका परिक्षित् को राज्य देकर परम गतिको प्राप्त करना
षोडशोऽध्यायः-महाराज परिक्षित् की दिग्विजय तथा धर्म और पृथ्वीका संवाद
सप्तदशोऽध्यायः-राजा परीक्षित् द्वारा कलिको दण्ड देना एवं अनुग्रह करना
अष्टादशोऽध्यायः-राजा परिक्षित् को शृङ्गी ऋषिका शाप
एकोनविंशोऽध्यायः-महाराज परिक्षित् का अनशनव्रत और श्रीशुकदेव गोस्वामीका आगमन
द्वितीयः स्कन्धः
द्वितीय स्कन्धकी कथाका सार
प्रथमोऽध्यायः-ध्यानकी विधि और भगवान्के विराटपका वर्णन
द्वितीयोऽध्यायः-भगवान्के स्थूल और सूक्ष्म रूपोंकी धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्तिका विवेचन
तृतीयोध्यायः-कामनाओंके अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना और भगवद्भक्तिके उत्कर्षका निरूपण
चतुर्थोऽध्यायः-महाराज परीक्षित्का सृष्टिविषयक प्रश्न और श्रीशुकदेव गोस्वामी द्वारा कथाका आरम्भ
पञ्चमोऽध्यायः-सृष्टिका वर्णन
षष्ठोऽध्यायः-विराट् पुरुषकी अध्यात्मादि विभूतियोंका वर्णन
सप्तमोऽध्यायः-भगवान्के लीलावतारों और उनकी विभूतियोंका वर्णन
अष्टमोऽध्यायः-महाराज परीक्षितके विविध प्रश्न
नवमोऽध्यायः-राजा परीक्षित् द्वारा पूछे गये प्रश्नोंका उत्तर और भगवान् द्वारा ब्रह्माजीको दिये गये चतुःश्लोकी भागवतके उपदेशका वृत्तान्त
दशमोऽध्यायः--श्रीमद्भागवतके दस लक्षण
तृतीयः स्कन्धः
तृतीय स्कन्धकी कथाका सार
प्रथमोऽध्यायः-श्रीउद्धव और विदुरजीका मिलन और उनके बीचमें कथोपकथन
द्वितीयोऽध्यायः-श्रीकृष्णके वियोगमें शोकाकुल उद्धव द्वारा श्रीकृष्णकी बाल्यलीलाओंका वर्णन
तृतीयोऽध्यायः-भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा और द्वारका लीलाओंका संक्षेपमें वर्णन
चतुर्थोऽध्यायः-श्रीउद्धवजीके कहनेपर विदुरजीका मैत्रेय ऋषि पास जाना
पञ्चमोऽध्यायः-विदुरजीका परिप्रश्न और मैत्रेय ऋषि द्वारा सृष्टिक्रमका वर्णन
षष्ठोऽध्यायः-विराट-मूर्तिकी सृष्टि
सप्तमोऽध्यायः-श्रीविदुरके अन्यान्य प्रश्न
अष्टमोऽध्यायः-गर्भोदकशायी विष्णुको नाभिसे ब्रह्माजीकी उत्पत्ति
नवमोऽध्यायः-श्रीब्रह्मा द्वारा भगवान्की स्तुति करके उनकी कृपासे सृष्टिके लिए सामर्थ्य प्राप्त करना
दशमोऽध्यायः-कालके लक्षण और दस प्रकारकी सृष्टिका वर्णन
एकादशोऽध्यायः-कालका विशेष रूपसे निरूपण
द्वादशोऽध्यायः-ब्रह्मा द्वारा की गयी विविध प्रकारकी सृष्टियोंका वर्णन
त्रयोदशोऽध्यायः-श्रीवराहदेव द्वारा जलमग्न पृथ्वीका उद्धार
चतुर्दशोऽध्यायः-सन्ध्याकालमें दितिका गर्भधारण
पञ्चदशोऽध्यायः-वैकुण्ठका वर्णन तथा वहाँके द्वारपाल जय और विजयको सनकादिका शाप
षोडशोऽध्यायः-श्रीहरि द्वारा सनकादि मुनियोंके शापका अनुमोदन
सप्तदशोऽध्यायः-हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्षका जन्म तथा हिरण्याक्षकी दिग्विजय ...
अष्टादशोऽध्यायः-हिरण्याक्षके साथ भगवान् वराहदेवका युद्ध
एकोनविंशोऽध्यायः-हिरण्याक्ष दैत्यका वध
विशोऽध्यायः-श्रीब्रह्मा द्वारा रचित विभिन्न प्रकारकी सृष्टियोंका संक्षेपमें वर्णन
एकविंशोऽध्यायः-कर्दम ऋषिकी तपस्या और मनुके साथ वार्तालाप
द्वाविंशोऽध्यायः-देवहूतिके साथ प्रजापति कर्दमका विवाह
त्रयोविंशोऽध्यायः-कर्दम और देवहूतिका विहार
चतुर्विशोऽध्यायः-भगवान् श्रीकपिलदेवका जन्म, महर्षि कर्दम द्वारा अपनी नौ कन्याओंको नौ प्रजापतियोंको प्रदान करना तथा कर्दम ऋषिका गृहस्थाश्रम त्याग
पञ्चविंशोऽध्यायः-देवहूतिके प्रश्न और भगवान् कपिलदेवके द्वारा भक्तियोगका माहात्म्य-वर्णन
षड्विंशोऽध्यायः-महत्-तत्त्व आदि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्तिका वर्णन
सप्तविंशोऽध्यायः-भक्ति-मिश्र ज्ञानका साधन और पुरुष-प्रकृ विवेकसे मोक्षकी प्राप्तिका वर्णन
अष्टाविंशोऽध्यायः-भक्ति-मिश्रित अष्टाङ्गयोगका वर्णन
एकोनत्रिंशोऽध्यायः-सगुण और निर्गुणके भेदसे भक्तियोग और कालकी महिमा
त्रिंशोऽध्यायः-देह और स्त्री, पुत्रादिमें आसक्त जीवोंकी तामसी गतिका वर्णन
एकत्रिंशोऽध्यायः-पाप-पुण्य द्वारा मनुष्य-योनिकी प्राप्तिरूप राजसी गति तथा उसमें गर्भसे लेकर पोगण्ड तक जीवकी यातनाका वर्णन
द्वात्रिंशोऽध्यायः-सकाम कर्मियोंकी पुनरावृत्ति, निष्काम कर्मियोंकी अनावृत्ति तथा अभक्तोंकी निन्दा
त्रयोस्त्रिंशोऽध्यायः-भगवान् श्रीकपिलदेवके द्वारा उपदिष्ट मार्गका अनुसरण करनेसे माता देवहूतिको भगवान्की प्राप्ति
चतुर्थः स्कन्धः
चतुर्थ स्कन्धकी कथाका सार
प्रथमोऽध्यायः-स्वायम्भुव मनुकी कन्याओंके पृथक्-पृथक् वंशका वर्णन और उनमें यज्ञादि मूर्ति द्वारा भगवान् श्रीहरिका आविर्भाव
द्वितीयोऽध्यायः-दक्ष प्रजापतिके द्वारा शिवजीको निन्दा एवं शाप प्रदान
तृतीयोऽध्यायः-पिता दक्षके यज्ञोत्सवमें जानेके लिए सतीकी प्रार्थना और श्रीशिवके द्वारा नीतिपूर्ण वाक्योंसे उन्हें रोकनेकी चेष्टा
चतुर्थोऽध्यायः-पतिकी आज्ञाका उल्लंघनकर पिताके यज्ञमें आयी हुई सतीका पिताके द्वारा अपमान तथा क्रोधसे यज्ञस्थलीमें सतीका देह-त्याग
पञ्चमोऽध्यायः-वीरभद्र के द्वारा दक्षयज्ञ-विध्वंस और दक्षका वध
षष्ठोऽध्यायः-ब्रह्मादि देवताओंका कैलाश जाकर श्रीमहादेवजीको मनाना
सप्तमोऽध्यायः-यज्ञस्थलमें श्रीविष्णुका आविर्भाव और उनकी कृपासे दक्षके यज्ञका सम्पूर्ण होना
अष्टमोऽध्यायः-विमाताके दुर्वचनोंसे पांच वर्षीय बालक ध्रुवका वन-गमन और कठोर तपस्या
नवमोऽध्यायः-ध्रुवके द्वारा भगवान्की स्तुति और उनका वर प्राप्तकर घर लौटना
दशमोऽध्यायः-यक्षके हाथ उत्तमका मारा जाना और ध्रुवका यक्षोंके साथ युद्ध
एकादशोऽध्यायः-यक्षोंका विनाश देखकर स्वायम्भुव मनुका ध्रुवको युद्ध बन्द करनेके लिए समझाना
द्वादशोऽध्यायः-महाराज ध्रुवके प्रति कुबेरका वरदान और ध्रुव द्वारा परमपदकी प्राप्ति
त्रयोदशोऽध्यायः-ध्रुवके वंशमें वेनका जन्म और उसके निष्ठुर आचरणसे उसके पिता राजा अङ्गका वन गमन
चतुर्दशोऽध्यायः-राजा वेनकी कथा
पञ्चदशोऽध्यायः-महाराज पृथुका आविर्भाव और राज्याभिषेक
षोडशोऽध्यायः-मुनियोंके आदेशानुसार वन्दीजनोंके द्वारा महाराज पृथुकी स्तुति
सप्तदशोऽध्यायः-प्रजाको भूखसे व्याकुल देखकर महाराज पृथुका पृथ्वीपर क्रोधित होना और पृथ्वी द्वारा उनकी स्तुति
अष्टादशोऽध्यायः-महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी-दोहन
एकोनविंशोऽध्यायः-पृथु महाराजके अश्वमेध-यज्ञमें इन्द्र द्वारा अश्वका अपहरण, पृथु द्वारा इन्द्रका वध करनेकी चेष्टा एवं ब्रह्माके द्वारा उसका निवारण
विशोऽध्यायः-महाराज पृथुकी यज्ञशालामें भगवान् विष्णुका आविर्भाव और वर प्रदान
एकविंशोऽध्यायः-महाराज पृथुका अपनी प्रजाको उपदेश
द्वाविंशोऽध्यायः-भगवान्के आदेशसे सनकादि महर्षियोंके द्वारा महाराज पृथुको उपदेश
त्रयोविंशोऽध्यायः-पत्नीके साथ महाराज पृथुका वन-गमन और भक्तियोग-समाधिके द्वारा उनका वैकुण्ठ-गमन
चतुर्विशोऽध्यायः-महाराज पृथुकी वंशपरम्पराका वर्णन और प्रचेताओंको श्रीरुद्रदेवका उपदेश
पञ्चविंशोऽध्यायः-प्रचेताओंके द्वारा श्रीहरिकी आराधना और पुरञ्जनोपाख्यानका प्रारम्भ
षड्विंशोऽध्यायः-राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना और कुपित रानीको सान्त्वना प्रदान करना
सप्तविंशोऽध्यायः-स्त्री, पुत्र आदिमें आसक्त पुरञ्जनकी आत्म-विस्मृति, पुरञ्जनपर चण्डवेगका आक्रमण और काल कन्याका चरित्र
अष्टाविंशोऽध्यायः-स्त्रीकी चिन्ता करनेसे पुरञ्जनको स्त्री-योनिकी प्राप्ति और अविज्ञातके उपदेशसे उसका मुक्त हाना
एकोनत्रिंशोऽध्यायः-पुरञ्जन-उपाख्यानका तात्पर्य
त्रिंशोऽध्यायः-प्रचेताओंको भगवान्का वरदान, उनका घर लौटकर विवाह करना और राज्य-पालन
एकत्रिंशोऽध्यायः-प्रचेताओंको देवर्षि श्रीनारदका उपदेश और उनका परमपदको प्राप्त करना
श्लोक-सूची
Sanskrit verses and their translations of the first four Cantos of Srimad-Bhagavatam (the Bhagavata Purana), the ripened fruit of all vedic literature. The translations are done in accordance with Vaisnava siddhanta.
TITLE: Srimad Bhagavatam Volume I Cantos 1 to 4 - Hindi
AUTHOR: Shrimad Krishna Dvaipayana-VedaVyasa
Edited by Srimad Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Prakashan
EDITION: 2009, First Edition
BINDING: Hardcover
PAGES and SIZE: 1300, 8.75" X 5.75", with Index
SHIPPING WEIGHT: 1600 grams
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