महर्षि श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासेन विरचितम्
गौड़ीयवेदान्ताचार्य श्रीश्रीमद् बलदेव विद्याभूषण कृत श्रीगोविन्दभाष्येण सूक्ष्मा टीकया च समेतम्
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Binding | Hardcover |
Size | 8.5" x 5.5" |
महर्षि श्रीकृष्णद्वैपायन-वेदव्यासेन विरचितम्
चतुर्थः अध्यायः
गौड़ीयवेदान्ताचार्य
श्रीश्रीमद् बलदेव-विद्याभूषण-कृत
श्रीगोविन्दभाष्येण सूक्ष्मा टीकया च समेतम्
श्रीगौड़ीय वेदान्त समिति एवं तदन्तर्गत भारतव्यापी श्रीगौड़ीय मठोंक
प्रतिष्ठाता, श्रीकृष्णचैतन्याम्नाय दशमाधस्तनवर
श्रीगौड़ीयाचार्यकशरी नित्यलीलाप्रविष्ट
ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशतश्री
श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान कशव गोस्वामी महाराजके
अनुगृहीत
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त नारायण गोस्वामी महाराज
द्वारा
सम्पादित
तत्कृत 'गोविन्दतोषणीवृत्ति' सहित
अवतरणिका भाष्य, भाष्यानुवाद, अवतरणिका-भाष्यकी टीका, टीकानुवाद, सूत्र, सूत्रार्थ, सूत्रानुवाद, मूल-गोविन्दभाष्य, भाष्यानुवाद, मूलभाष्यकी सूक्ष्मा-टीका और टीकानुवाद एवं सम्पादक-कृत गोविन्दतोषणीवृत्ति नामक अनुव्याख्या सहित प्रकाशित
"श्रील गुरुदेवने वेदान्तके अकृत्रिम भाष्य श्रीमद्भागवत और श्रीगोविन्दभाष्यके अनुसरणपूर्वक नित्यलीलाप्रविष्ट ॐ विष्णुपाद अष्टोत्तरशतश्री श्रीमद्भक्तिश्रीरूप सिद्धान्ती गोस्वामी महाराज द्वारा बँगला भाषामें लिखित सिद्धान्तकणा' नामक अनुव्याख्याके आधारपर प्रणीत 'गोविन्दतोषणी' नामक 'वृति' सहित हिन्दी भाषामें वेदान्तसूत्रका सम्पादन करके न केवल गौड़ीय-वैष्णव-सम्प्रदायका गौरव वर्द्धित किया है, अपितु परमार्थ तत्त्वानुशीलन अभिलाषी सभी सुधीजनोंका असीम उपकार और आनन्द विधान किया है। इस 'गोविन्दतोषणीवृत्ति' में वेदान्तके दुरुह एवं जटिल विषयोंको अत्यन्त सरलभाषामें परिस्फुट किया गया है।
यद्यपि श्रीमद्भागवतको ही गौड़ीयजन वेदान्तके अकृत्रिम भाष्यके रूपमें जानते हैं, तथापि श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु द्वारा श्रीगोविन्ददेवजीके आदेशसे विरचित श्रीगोविन्दभाष्य और सूक्ष्मा-टीका भी गौड़ीय जगत्की एक अमूल्य सम्पद है। अतः गौड़ीय-वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषणके द्वारा विरचित गोविन्दभाष्यसे समन्वित वेदान्तसूत्रके आत्मप्रकाशित होनेसे यह ग्रन्थरत्न विद्वतजनोंके निकट परमादृत होगा - इसमें सन्देह नहीं है।
श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास प्रणीत वेदान्तसूत्र ब्रह्मतत्त्व निर्णायक परम प्रमाणिक ग्रन्थ है। वेदके चरम और परम सिद्धान्त इस ग्रन्थमें निबद्ध हैं।
श्रील गुरुदेवने इस ग्रन्थरत्नके विषयमें अनुवादिका श्रीमती मधु खण्डेलवालसे कहा था- "मैं विश्व-ब्रह्माण्डमें इस प्रकारका ग्रन्थ नहीं देखता हूँ। इस ग्रन्थसे जीवोंका बहुत कल्याण होगा।"
"श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभु गौड़ीय-सम्प्रदायके एक नक्षत्र विशेष हैं। षड्-गोस्वामियोंके उपरान्त उन्होंने सम्प्रदायका जैसा उपकार किया है, वैसा अन्य किसीने नहीं किया। इससे ऐसा बोध होता है कि वे श्रीमन्महाप्रभुके नित्य पार्षदोंमेंसे एक हैं। श्रीगौरशक्ति श्रील भक्तिविनोद ठाकुरकी उक्ति है-श्रीबलदेव प्रभुने जयपुरमें वेदान्तसूत्रम् गलता-पहाड़ीपर गौड़ीय-वैष्णव-सम्प्रदायको विजय पताकाको लहराकर गौड़ीय-सम्प्रदायके मध्व-सम्प्रदायके अन्तर्भुक्त होनेकी वैशिष्ट्य सहित घोषणा की है एवं वे स्वयं रूपानुग गौड़ीय-वैष्णव हैं-उन्होंने इसे भी प्रमाणित किया है। इसका कारण है कि वे श्रीमन्महाप्रभुके अनुगत श्यामानन्द परिवारके अन्तर्गत हैं, श्यामानन्द प्रभुने श्रील जीव गोस्वामीका आनुगत्य स्वीकार किया है तथा श्रील जीव गोस्वामीके एकान्त भावसे रूपानुग वैष्णव होनेके कारण श्रीबलदेव प्रभु भी रूपानुग वैष्णव हैं। उनके एक साथ पाञ्चरात्रिक और भागवत-परम्परामें अवस्थान करनेपर भी उन्होंने भागवत-परम्परामें भजन-निष्ठाके माधुर्य और उसकी श्रेष्ठताको स्थापित किया है।"
श्रीश्रीमद्भक्तिवेदान्त वामन गोस्वामी महाराजने सिद्धान्तरत्नम् ग्रन्थके स्वलिखित 'सम्पादकीय निवेदन' में श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभुकी संक्षिप्त जीवनी एवं उनकी ग्रन्थावलीके सम्बन्धमें लिखा है - "श्रीगौड़ीय-वैष्णव-वेदान्ताचार्य महामहोपाध्याय पण्डितकुल मुकुटमणि श्रील बलदेव विद्याभूषण प्रभुकी अतिमर्त्य जीवनी और उनके दार्शनिक विचार-वैशिष्ट्यके सम्बन्धमें मेरे गुरुपादपद्म श्रील भक्तिप्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज द्वारा लिखित 'गौड़ीय-वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव', श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती प्रभुपाद द्वारा प्रदत्त 'भाष्यकार-विवरण' एवं श्रील भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा लिखित 'गौड़ीय-वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण' - इन प्रबन्धोंकी चर्चा करनेसे ही श्रील बलदेव प्रभुका सम्पूर्ण एवं सुन्दर परिचय पाया जाता है। उक्त तीन प्रबन्धोंको निम्नलिखित कुछेक भार्गोमें विभक्त किया गया है - (१) श्रील बलदेवका आविर्भाव काल, (२) जाति, धर्म, जन्मभूमि और विद्याभ्यास, (३) दैव-वर्णाश्रम धर्ममें प्रतिष्ठा, (४) द्वितीय बार गुरुकरण, (५) श्रीनवद्वीप-दर्शन और श्रीवृन्दावनमें वास, (६) श्रीनारायणकी अपेक्षा श्रीकृष्णकी श्रेष्ठता स्थापन करनेके लिए जयपुर यात्रा, (७) श्रीगोविन्दभाष्यकी रचना, (८) गलता गद्दीमें सत्सम्प्रदायकी प्रतिष्ठा, (९) गौड़ीय-वैष्णोंकी श्रेष्ठताकी स्थापना, (१०) जय लाभ और 'विद्याभूषण' उपाधिकी प्राप्ति, (११) गौड़ीय-वैष्णवोंकी अभिनव रूपसे मध्य-सम्प्रदायमें स्थिति, (१२) श्रीरूपानुगत्य, (१३) श्रीवृन्दावन स्थित श्रीश्यामसुन्दर मन्दिरमें अन्तिम जीवन यापन, (१४) काल निर्णय और गुरु-परम्परा, (१५) शिष्य-परम्परा, (१६) पाञ्चरात्रिक परम्परा और भागवत-परम्परा, (१७) ब्रह्माजीके अवतार श्रीगोपीनाथ मिश्र ही बलदेवके रूपमें अवतीर्ण और (१८) स्वरचित ग्रन्थ परिचय।
"कथित है कि श्रीचैतन्य-पार्षद श्रीगोपीनाथ मिश्र जिन्होंने सार्वभौम भट्टाचार्यके साथ श्रीमन् महाप्रभुके श्रीमुख-निसृत सूत्रभाष्यको श्रवण किया था, वे ही बादमें ब्रह्म-सम्प्रदायके भाष्यकर्ता श्रील बलदेव विद्याभूषणके रूपमें आविर्भूत हुए। आचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण रचित ग्रन्थ तालिका इस प्रकार हैः (१) श्रीगोविन्दभाष्य, (२) सूक्ष्मा-टीका, (३) सिद्धान्तरत्नम् अथवा भाष्यपीठकम् (४) सिद्धान्तरत्नम्-टीका (५) साहित्य-कौमुदी, (६) व्याकरण-कौमुदी, (७) तत्त्वसन्दर्भ-टीका, (८) इशोपनिषद भाष्य, (९) सिद्धान्त-दर्पणम्, (१०) काव्य-कौस्तुभ, (११) गोपालतापनी-भाष्य, (१२) साहित्य कौमुदी टीका (कृष्णानन्दिनी), (१३) छन्दकौस्तुभ-भाष्य, (१४) लघुभागवतामृत-टीका, (१५) 'चन्द्रालोक' ग्रन्थकी टीका, (१६) नाटक-चन्द्रिका-टीका, (१७) श्रीमद्भागवत-टीका (वैष्णवानन्दिनी), (१८) वेदान्त-स्यमन्तक, (१९) प्रमेय-रत्नावली, (२०) गीताभूषण-भाष्य, (२१) विष्णुसहस्रनाम-भाष्य (नामार्थसुधा), (२२) संक्षेप-भागवतामृत-टिप्पणी (सारङ्ग-रङ्गदा), (२३) स्तव-माला-विभूषण-भाष्य, (२४) पदकौस्तुभ, (२५) श्रीश्यामानन्दशतकटीका।"
श्रीहरि-गुरु-वैष्णव-कृपालेश-प्रार्थी
प्रकाशन-मण्डल
Includes Original GovindaBhashya (by Sri Srimad Baldeva Vidya Bhushana) and its (Sukshma) Concise Commentary , with Original Introduction Commentary and Original Sutra's alongwith their Meaning, Translations and Explanations. Also includes Govinda-Tosani-Vrtti Elaboration by the Editor.
Śrīla Vyāsadeva, a powerful incarnation of Nārāyaṇa, compiled the Vedānta-sūtra, and in order to protect it from unauthorized commentaries, he personally composed Śrīmad-Bhāgavatam on the instruction of his spiritual master, Nārada Muni, as the original commentary on the Vedānta-sūtra. Besides Śrīmad-Bhāgavatam, there are commentaries on the Vedānta-sūtra composed by all the major Vaiṣṇava ācāryas, and in each of them devotional service to the Lord is described very explicitly. Only those who follow Śaṅkara’s commentary have described the Vedānta-sūtra in an impersonal way, without reference to viṣṇu-bhakti, or devotional service to the Lord, Viṣṇu. Generally people very much appreciate this Śārīraka-bhāṣya, or impersonal description of the Vedānta-sūtra, but all commentaries that are devoid of devotional service to Lord Viṣṇu must be considered to differ in purport from the original Vedānta-sūtra. In other words, Lord Caitanya definitely confirmed that the commentaries, or bhāṣyas, written by the Vaiṣṇava ācāryas on the basis of devotional service to Lord Viṣṇu, and not the Śārīraka-bhāṣya of Śaṅkarācārya, give the actual explanation of the Vedānta-sūtra.
TITLE: Vedanta Sutra Chapter 4 - Hindi
AUTHOR: Shrimad Krishna Dvaipayana-VedaVyasa
Includes Original Sanskrit Concise Commentary by Sri Srimad Baldeva Vidya Bhushana
Edited by Srimad Bhaktivedanta Narayana Goswami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Prakashan
EDITION: 2016, First Edition
PAGES: 650, with Color Plates and Index
SHIPPING WEIGHT: 900 grams
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