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नीति, धर्म, ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति, भक्ति और प्रीति सम्बन्धीय श्रीमन्महाप्रभुके उपदेश
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श्रीश्रील भक्तिविनोद ठाकुर विरचित
This book progressively presents teachings of Sri Caitanya Mahaprabhu relevant to all sections of human society and clarifies how these teachings may be practically applied in the modern world. Containing the essence of the Vedas, the teachings are a wonderful rainfall of nectar that douses the forest fire of the quarrels and hypocrisy in this present age of Kali. The book is divided into eight "rainfalls of nectar", and each of these is sub-divided into "showers of instruction".
श्रीशचीनन्दन श्रीचैतन्यदेवने श्रीधाम नवद्वीप मायापुरमें अवतीर्ण होकर अपने पवित्र चरित्र और मधुर उपदेशोंसे जगत-जीवोंको जो शिक्षा दी है, उसीका नाम श्रीचैतन्य-शिक्षामृत है। वही शिक्षा निखिल जीवोंके लिए परमामृत धन है। इस ग्रन्थमें वर्णित सैद्धान्तिक विचारोंकी पुष्टिके लिए कई शास्त्रीय प्रमाण दिए गए हैं, जिससे कि पाठकोंको उन विषयोंमें कोई सन्देह न रहे। पाठक महोदयोंसे हमारा नम्र निवेदन है कि वे विशेष यत्नाग्रहसे इस ग्रन्थका अनुशीलनकर कृतकृतार्थ हों।
श्रीचैतन्य-शिक्षामृतकी आठ वृष्टियोंमें सामान्यतः परमार्थ-धर्म, गौणविधि या धर्माचार, मुख्यविधि या वैधीभक्ति, रागानुगाभक्ति, भावभक्ति, प्रेमभक्ति और रसविचारकी सुस्पष्ट एवं विशद आलोचनाके साथ सारगर्भित एवं ठोस उपसंहार प्रस्तुत किया गया है। श्रीमन्महाप्रभु चैतन्यदेवकी शिक्षा-प्रणालीको जाननेके लिए अचिन्त्यभेदाभेद तत्वका अनुशीलन करना परम आवश्यक है। अखिल रसामृत मूर्त्ति - "रसो वै सः" लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र ही श्रीनामभजनके मुख्य विषय-विग्रह हैं और श्रीनामभजन या श्रीकृष्णनाम-संकीर्त्तन द्वारा ही अष्टयाम लीलाकी सफूर्त्ति सम्भव है। यही श्रीवार्षभानवी-दयितदासकी वाणी "कीर्त्तन प्रभावे स्मरण हइबे, सेकाले भजन निर्जन सम्भव: में परिस्फुट है।
TITLE: श्रीश्रीचैतन्य-शिक्षामृत (Sri Sri Caitanya Siksamrta - Hindi)
AUTHOR: Srila Bhaktivinoda Thakura
Hindi Translation and Edited by Srimad Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja
PUBLISHER: Gaudiya Vedanta Publications.
EDITION: Fourth Edition, 2006.
BINDING: HardBound
Pages and Size : 490, 9" X 6"
SHIPPING WEIGHT: 850 grams.
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